कार्य (work)
कार्य का अर्थ किसी क्रिया के संपादन से होता है ।
जैसे – हल चलाना, लकड़ी काटना, पढना इत्यादि ।
बल लगाकर किसी वस्तु को बल की दिशा में विस्थापित करने की क्रिया को ही कार्य कहते है ।
कार्य , बल तथा विस्थापन का अदिश गुणनफल होता है ।
W = F . S
कार्य का s. i मात्रक = Joule (J) = N-m = kg ms^2
कार्य एक अदिश राशि होती है ।
Example
अगर किसी दीवार पर धक्का लगाते हैं, तो किया गया कार्य शून्य होता है क्योंकि विस्थापन शून्य होती है ।
अगर कोई व्यक्ति 10kg का बोझ लेकर कई वर्षों तक भी खड़ा रहता है , तो किया गया कार्य शून्य होता है । क्योंकि विस्थापन शून्य होता है ।
कोई व्यक्ति सीढ़ी पर चढ़ा और चढ़कर उत्तर गया तो किये गये कार्य का म
किया गया कार्य धनात्मक , ऋणात्मक तथा शून्य हो सकता है ।
Note ::.. प्रश्न में कार्य शून्य उसी का होता जहाँ बल और विस्थापन के बीच का कोण मूलतः 90° हो ।
उठा कर रखने में किया गया कार्य शून्य होता है ।
शक्ति (Power)
कार्य करने की दर को शक्ति कहते है ।
शक्ति का S.I मात्रक = watt (W)
शक्ति का व्यवहारिक / मात्रक अश्व शक्ति (Horse power ) है ।
1H.P = 746 watt
शक्ति का औद्योगिक मात्रक अश्व शक्ति ( H.P) है ।
जेनरेटर या मोटर की शक्ति को H.P में व्यक्त किया जाता है ।
अधिक क्षमता वाले जेनरेटर या ट्रांसफॉर्मर की शक्ति को कोलोवाट (kw) में व्यक्त किया जाता है ।
ऊर्जा ( Energy )
कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं ।
सभी प्रकार की ऊर्जा का S.I मात्रक जूल और C.G.S मात्रक अर्ग हैं ।
सभी प्रकार की उर्जा अदिश राशि होती है ।
यांत्रिक ऊर्जा दो प्रकार की होती है ।
गतिज ऊर्जा
स्थितिज ऊर्जा
गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा = यांत्रिक ऊर्जा
गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy )
गति करने वाली वस्तु में गतिज ऊर्जा होती है ।
जब गतिज ऊर्जा समान हो संवेग तो वो होगा जो होना चाहिए , समान नही रहने पर उल्टा होगा ।
दो अलग अलग द्रव्यमान की वस्तु का अगर संवेग स्थिर हो तो गतिज ऊर्जा हल्के वाले का अधिक होगा ।
द्रव्यमान ऊर्जा (Mass Energy)
प्रत्येक द्रव्य में उसके द्रव्यमान के कारण उसमें ऊर्जा संचित होती है , जिसे द्रव्यमान ऊर्जा कहते हैं ।
नाभिकीय उर्जा या परमाणु ऊर्जा द्रव्यमान ऊर्जा से ही प्राप्त होती हैं ।
स्थितिज ऊर्जा ( Potential Energy)
किसी वस्तु की स्थिति के कारण जो कार्य की क्षमता होती है उसे स्थितिज ऊर्जा कहते है ।
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